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संसार का सेन्टर पॉइंट

  • Pranav Jain
  • Apr 21, 2020
  • 2 min read

संसार का सेन्टर पॉइंट मानव जीवन एक अवसर है। इसे खोना है या सार्थक की खोज में लगाना है इसमें मनुष्य स्वतंत्र है। पिछले अनंत जन्मों में जिन ढाई अक्षरों को आत्मसात ( अपने अंतर्गत करना) नहीं किया उसे इस जनम में करना है। एक ढाई अक्षर के गिरफ्त में चौदह राजू लोक = सम्पूर्ण संसार है तो दूसरा ढाई अक्षर अपना सम्पूर्ण प्रभाव सिर्फ ढाई द्वीप में ही दिखता है। "कर्म" और "धर्म" ऐसे ढाई अक्षरी शब्द हैं जिसे समझ लिया तो मोक्ष का शास्वत स्थान मिलता है। संसार में कर्म और धर्म दोनों का शासन चलता है किन्तु इनका साम्राज्य,शक्ति एवं प्रभाव भिन्न भिन्न है। कर्म के वश में तो हर जीव है किन्तु हर जीव के वश में धर्म नहीं है। कर्मचक्र बड़ी तेज़ी से चल रहा है। इसलिए स्वास्थ्य हो या स्टेटस,पैसा हो या परिस्थिति, हर चेंज कर्म के लेबल तले मिलता है। बिना धर्म के जीवन गतिशील रह सकता है किन्तु कर्म की दुहाई किसी न किसी मोड़ पर हर इंसान देता है। जैसे : दुर्घटना में अचानक यदि कोई मर जाये तो मुख से निकलता है, बेचारा कितना अच्छा था किन्तु कर्म ही नहीं छोड़ते। इससे पूरी तरह प्रकट है, संसार का सेण्टर पॉइंट "कर्म" है। वनस्पति से लेकर धनपति या राष्ट्रपति तक, गृहस्त से लेकर श्रमिक या वैज्ञानिक तक और साधु से लेकर तीर्थंकर या चक्रवर्ती सम्राट तक सब पर कर्म का शासन है। कोई इसे जाने,माने या न भी पहचाने परंतु संसार का अस्तित्व कर्म से जीवित है। आत्मा बार - बार जन्म - मरण का roll over कर रही है उसका कारण है, कर्म हम पर Rule कर रहा है। कर्मसत्ता इतनी हावी और प्रभावी है कि उसके तले धर्मसत्ता और ईश्वर सत्ता का प्रभाव धूमिल हो जाता है। कर्म सत्ता का शासन कर्मचक्र से चलता है। कर्म बंधन का एवं धर्म मुक्ति का प्रतीक है। कर्म संबंध क्रिया से है और धर्म का संबंध स्वभाव से है। अतः स्वभाव द्रिष्टी = भाव शुद्धि ही आत्मा को कर्मभार से हल्का बनाकर एक दिन पूर्ण भी कर देती है। इसलिए कर्मो से भगा नहीं जा सकता उसे भोगना ही पढ़ेगा किन्तु भगवान महावीर का कर्म सिद्धांत, "कर्मबंध और कर्मफल" के बीच में अद्भुत विज्ञानं सिखाता है जो "कर्मक्षय" का रहस्य खोलता है। यह विज्ञानं कर्म को मैनेज करने की कला सिखाता है और कर्म को शून्य करने का प्रोसेस भी समझाता है। कर्मक्षय की भावना ही जीवन में सम्भावना जगती है कि मुझे आत्मा को कर्म से शून्य यानि विलग करना है। सम्भावना से भावना प्रबल होती है और ये प्रबलता आत्मबल को जगती है। इसलिए प्रति दिन अपने आप को यह रिमाइंडर दें कि "मुझे कर्म का क्षय करना है"।

 
 
 

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