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क्या कर्म सर्वशक्तिमान है?

  • Pranav Jain
  • Apr 25, 2020
  • 2 min read

हर समय हम यह प्रशन करते हैं कि क्या कर्म ही सबसे शक्तिमान है? क्या कर्म को कोई हरा नहीं सकता? संसार की game "power" से चलती है। जीवन में हर पल शक्ति की ही पूजा एवं भक्ति होती है। धनबल, जनबल, बाहुबल, तपबल,विद्याबल आदि दुनिया के समस्त बलों को हारने वाला super power "कर्मबल" है। इस कथन का इतिहास साक्षी है : १) श्री राम चंद्र भगवान को वनवास जाना पढ़ा। २) भगवान ऋषबदेव को मुनि अवस्था मैं एक वर्ष तक आहार पानी नहीं मिला। कर्म के super power का प्रभाव ऐसा है कि कहीं कहीं सामान्य अभिनेता भी भगवन के सामान पूजा जाता है, चाय बेचने वाला देश का राष्ट्रपति बन जाता है, तो कहीं Z security से सुरक्षित इंसान को भी गोली से मार दिया जाता है। यह सब कर्म की ही power है। इससे सिद्ध होता है कि कर्म चक्रव्यूह के सामान है। इससे मुक्त होने का जितना भी प्रयास करो फिर से कर्म बंद जाते हैं। कर्म वज्रमय है जिसे कोई महाबली भी तोड़ नहीं पाया और इतना प्रचंड है की सारे बल इसके सामने छोटे लगते हैं। जैसे जैसे वक्त निकलता है वैसे वैसे कर्म भी multiply होकर बढ़ता है। भगवान् महावीर स्वामी जी के कथन : एक बार गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से पूछा, "भगवन में कितनी शक्ति है?" भगवान् ने फ़रमाया, " गौतम ! कर्म में अनन्त शक्ति है और आत्मा में भी अनन्त शक्ति संपन्न है। 'कर्म जड़ है' और 'आत्मा चेतन है' इसलिए दोनों की शक्ति में अंतर् है। जड़ की अनंत शक्ति सव्य सक्रीय नहीं हो सकती। कर्म का बल खुद कुछ नहीं क्र सकता अर्थात कर्म अपने आप active नहीं होता। शक्ति दो प्रकार की होती है, एक है लब्धिवीर्य शक्ति = योगात्मक शक्ति और दूसरी है करणवीर्य शक्ति = प्रयोगात्मक शक्ति। कर्म के पास सिर्फ लब्धिवीर्य शक्ति है परन्तु आत्मा के पास दोनों शक्तियां हैं। इसलिए चाहे कर्म अनन्तशक्ति सम्पन्न है किन्तु क्रियात्मक शक्ति की absence में वह सर्वशक्तिमान नहीं हो सकता। कर्म की अनन्तशक्ति की सीमा है और आत्मा supreme है इसलिए वह कर्म की अनन्त power को zero कर सकती है। कर्म की power तभी तक super है जब तक आत्मा की करणवीर्य सुप्त (सोयी हुई) है। यदि आत्मा अपनी क्रियात्मक शक्ति के प्रति सहज हो जाये तो कर्म की अनन्त power की पराजय निष्चित है। अतः कर्म महाशक्ति संपन्न होने पर भी सर्वशक्ति सम्पन्न नहीं है।

 
 
 

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